शीर्षक = जल प्रपात
रात के 8बजे थे । हेमंत दिन भर हाथ में अपना बैग लिए उसमे कंपनी के प्रोडक्ट लिए गली गली जाकर उन्हें बेच कर घर की और जा रहा था । कुछ पैसे उसके हाथ में थे जिन्हे लेकर वो अपने घर में घुसा जून का महीना था गर्मी भी शादीद थी दिन भर ।
"अरे आप आ गए , मैं अभी आपके लिए पानी लाती हूँ जब तक आप हाथ मुँह भी धो लीजिये फिर खाना लगा देती हूँ हम सब के लिए " हेमंत की पत्नि हेमा ने कहा
"धन्यवाद , आज तो बेहद गर्मी थी दिन भर , ये लो पैसे इन्हे संभाल कर रख दो राशन लाना है " हेमंत ने पैसे देते हुए कहा और नहाने चला गया ।
थोड़ी देर बाद हेमा ने ज़मीन पर खाना लगा दिया प्लेट्स में।
"हेमा, हिमांशु और हंसिका ( हेमंत और हेमा के बच्चे जो की जुड़वाँ है और 10 साल के है ) नज़र नही आ रहे खाना खा कर सो गए किया, मुझसे मिलने भी नही आये " हेमंत ने पूछा
हेमा " आप खाना खाइये दिन भर के भूखे होंगे "
"किया बात है हेमा, मेने जो पूछा उसका जवाब नही दिया तुमने हिमांशु और हंसिका कहा है " हेमंत ने दोबारा पूछा
हेमा गहरी सी सास लेकर बोली " नाराज़ है वो दोनों इसलिए अपने कमरे में जाकर भूखे ही सो गए "
"क्या, नाराज़ है लेकिन क्यू, और तुम उन्हें भूखा सोया देख इतनी खामोश क्यू हो, तुमने उन्हें खाना क्यू नही खिलाया और आखिर नाराज़ किस बात पर है " हेमंत ने एक सास में सब सवाल पूछ लिए
"कोइ नही एक रात भूखे सो जाएंगे तो कुछ हो नही जाएगा उन्हें, बाहर बहुत सारे बच्चे ऐसे है जिन्हे एक समय का भी खाना नसीब नही होता " हेमा ने गुस्से में कहा
"अरे अरे हेमा ये केसी बाते कर रही हो तुम अपनी औलाद के लिए, ज़रूर कुछ बड़ी बात हुयी है , बताओ मुझे शायद मैं कुछ मदद कर दू " हेमंत ने कहा
"होना किया है , गर्मियों की छुट्टियां ख़त्म हो रही है " हेमा ने कहा तभी बीच में उसकी बात को काटते हुए हेमंत ने कहा " छुट्टियां तो सच में ख़त्म हो रही है , और हाँ अच्छा हुआ याद दिला दिया अब नयी किताबें भी तो खरीदना होंगी उसके लिए भी तो अभी से पैसे इकठ्ठा करने होंगे अच्छा ये सब छोड़ो ये बताओ की बच्चे सिर्फ स्कूल की छुट्टियां ख़त्म होने की वजह से उदास है या फिर कोइ और वजह भी है उनके उदास होने की, क्यूंकि उन दोनों को तो घर से ज्यादा स्कूल अच्छा लगता है "
"हाँ, एक और वजह भी है जिसकी वजह से आज वो दोनों नाराज़ है और बिना खाना खाये सो गए इस बार इनके इस नए स्कूल में इन सब को एक टॉपिक दिया गया था कि ये लोग जहाँ कही भी जाए उसके बारे में लिख कर लाये और स्कूल अध्यापिका को दे। ताकि स्कूल वालो को भी पता चल सके की बच्चों ने कहा कहा अपनी छुट्टियां बितायी।
ये स्कूल वाले भी ना बच्चों को अजीब अजीब सी जिदे लगा कर भेजते है , अब उन्हें कौन बताये इतनी मेहंगाई में बच्चों की अच्छे स्कूलों में पढ़ाई हो जा रही है वही बहुत है ना की रह गए और खर्चे । अपना तन पेट काट कर बच्चों को स्कूल भेजो उनकी फीस भरो और उपर से स्कूल वाले नए नए ढकोसले करने को कहते है ।
पहले माँ ज़िंदा थी तो मैं गर्मियों की छुट्टी में मायके चली जाती थी अपने गांव वही बच्चे घूम लेते थे और अपने दोस्तों को बता भी देते थे । लेकिन जब से माँ मरी है तब से भाई भाभी ने भी बुलाना छोड़ दिया वो खुद बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाती है । पहले माँ हमारी और आपकी और बच्चों की खातिर दारी करती थी लेकिन अब तो बस मायके का नाम रह गया माँ के मरने के बाद। अब दोनों बच्चे भी नही जाना चाहते है क्यूंकि नानी तो रही नही। और मामा मामी भी इतना समझते नही।
इसलिए वो बेचारे दो दिन से नैनीताल जाने की ज़िद्द कर रहे है वहा पर एक बहुत विशाल जलप्रपात ( झरना )है । वहा जाकर उसका आनंद लेना चाह रहे है ।
लेकिन उन्हें कौन समझाये नैनीताल जाना इतना आसान नही हम चारो का पूरा बजट ख़राब हो जाएगा जो भी पैसे राशन पानी के लिए बचा कर रखे है सब खर्च हो जाएंगे और हाथ कुछ नही लगेगा और बेवजह की थकान हो जाएगी वो अलग और अगर बीमार हो गए यहाँ गर्मी और वहा ठण्ड की वजह से तो डॉक्टर का इलाज वो अलग महंगा इसलिए मेने साफ साफ मना कर दिया उन लोगो से और कहा कोइ झूठी कहानी लिख देना की हम वहा गए थे । " हेमा ने कहा
हेमंत उसकी बात ख़ामोशी से सुन रहा था उसने पास रखे ग्लास से पानी पिया और एक गहरी सास ले कर बोला " हेमा तुमने बेवजह बच्चों को नाराज़ कर दिया एक बार मुझसे पूछ लेती शायद मैं कुछ कर सकता "
"घर आप चला रहे है या मैं, मुझे पता है पैसा कब और कहा खर्च करना है , और नैनीताल जाने में कम से कम 5000 रूपये पर चक्की चल जाएगी बेवजह । और आप भी कहा से लाएंगे दिन भर तो गर्मी में कंधे पर बस्ता डाले सामान बेचते रहते है गली गली जाकर । आपका बॉस भी खड़ूस है बच्चे नही है उसके फिर भी पता नही इतनी दौलत कहा लेकर जाएगा। और वैसे भी अभी किताबों का स्कूल की फीस का खर्चा भी है अगली साल चले जाएंगे दो दिन रोएँगे फिर ठीक हो जाएंगे। तीन वक़्त की रोटी आसानी से मिल रही है इस मेहंगाई में वही बहुत है । स्कूल वालो का किया है उनकी जेब से कुछ थोड़ी जा रहा है " हेमा ने कहा
हेमंत बोला ये सुन कर " हेमा, आज कल के बच्चों का बचपन हमारे तुम्हारे बचपन की तरह नही है जिनका सिर्फ खाने से गुज़ारा हो जाता था । तीन वक़्त की रोटी के साथ साथ बच्चों को थोड़ा घुमाना फिराना भी जरूरी है और खुद भी बच्चो के साथ थोड़ा बाहर जाना भी जरूरी है । आज कल के बच्चो को प्यार जताना भी पड़ता है सिर्फ दिखावे से काम नही चलता ।
माना मेरे पास पैसे नही है लेकिन जितने है उनमे भी घूमा जा सकता है , जरूरी नही कही जाने के लिए ढेर सारे पैसे होना ज़रूरी हो। जैसे हम लोग बच्चों पर पढ़ाई का दबाव डाल कर उन्हें अच्छे नंबर लाने का कहते है उसी तरह उनका भी हक़ है की वो भी हमसे अपनी ख्वाहिश जाहिर करे और हम भी उन्हें पूरा करने की कोशिश करे ।
इसलिए हम लोग आने वाले रविवार को चल रहे है नैनीताल और वहा बने उस झरने का आनंद लेने। तुम्हे भी तो मैं कही घुमाने नही लेने गया । जिंदगी में परेशानिया , दुख , तकलीफे तो आती ही रहती है जब तक इंसान मर नही जाता। और किया पता कल को मैं मर गया तो, मेरे तो दिल पर बोझ रह जाएगा कि मैं अपने बीवी बच्चों को नैनीताल तक घुमाने नही ले जा सका
भगवान ना करे कि आपको कुछ हो हेमा ने उसकी बात काटते हुए कहा।
बात तो सही है आपकी लेकिन हमारे पैसे सब खर्च हो जाएंगे जो भी हमने राशन पानी के लिए बचा कर रखे है और अभी तो आपकी तनख्वाह आने में भी समय है ।
"हेमा, तुम ईश्वर कि सुबह शाम आराधना करती हो फिर भी तुम्हे ईश्वर पर भरोसा नही। उसकी लीला अपरम्पार है वो कही ना कही से कुछ ना कुछ बंदोबस्त कर देगा और वैसे भी हम लोग कौन सा सारे पैसे खर्च करके ही वहा से लौटेंगे। बस थोड़ा बहुत आनंद लेंगे वहा का और वापस घर लोट आएंगे इस तरह बच्चे भी खुश हो जाएंगे और हम भी और पैसे का क्या है दिन भर हो जाता है इसी के पीछे भागते हुए लेकिन फिर भी थोड़ा बहुत ही हाथ आता और अगले दिन उससे ज्यादा कमाने का लालच दे देता है ।" हेमंत ने कहा
"जैसा आपको ठीक लगे अब मैं क्या कर सकती हूँ बच्चों को जाकर बताती हूँ ताकि खाना खा कर सो जाए ये गरीबी भी ना जाने क्या कुछ करवा लेती है इंसान से बेचारे भूखे ही सोने चले गए ।" हेमा ने कहा और बच्चों को बताने चली गयी ये खबर सुन कर मानो उनके शरीर में करंट दौड़ गया हो। वो झट उठे पहले एक दूसरे को फिर माँ को और फिर पापा को गले लगा लिया।
हेमा जी उन्हें देख मुस्कुराते हुए बोली अपने आप से "शायद इनके पापा सही कह रहे थे कभी कभी बच्चों की भी बात मानना चाहिए देखो कितना खुश है शायद यही आज कल के बच्चों की ख़ुशी है वरना हम तो बचपन में घर में पनीर की सब्जी बनी देख खुश हो जाते थे सच में ज़माना बदल रहा है "
रविवार की सुबह सब लोग चार बजे उठे । हिमांशु और हंसिका बेहद खुश थे उन्हें तो दो दिन से नींद भी नही आ रही थी बस नैनीताल और उसके विशाल झरने के बारे में सोच रहे थे और उसमे खुद को नहाते होने का एहसास कर रहे थे ।
हेमा जी ने बहुत कुछ बनाया खाने के लिए ताकि बाहर से कुछ खाने की ज़रूरत ना पड़े।
4घंटो बाद वो नैनीताल पहुंच गए ।
वहा का मौसम बेहद सुहाना था । ठंडी हवा बह रही थी । पहले वो नैनीताल घूमे उसके बाद वो झरने की तरफ बढ़ चले ।
दोपहर तक वो वहा पहुंच गए क्यूंकि चढ़ाई बहुत थी । अपनी आँखों के सामने उस विशाल झरने को बहता देख हिमांशु और हंसिका की ख़ुशी का ठिखाना नही था । जिसे अब तक उन्होंने गूगल पर देखा था । उसका पानी बेहद ठंडा था ।
वो दोनों उस ठन्डे पानी से नहाये चोरी छिपकर क्यूंकि वहा नहाना मना था ।
उसके बाद उन्होंने घर की बनी कचौरियो और आलू के परांठे का आंनद लिया सब बेहद खुश थे तभी हिमांशु ने कहा " पापा ये झरना कहा से आ रहा है "
"बेटा ये झरना पहाड़ो पर जमीं बर्फ के पिघलने पर बन रहा है और इसकी ख़ूबसूरती लोगो को अपनी और खींच रही है इसका पानी एक दम पवित्र है "
"पापा क्या जब हम दोनों बड़े हो जाएंगे और जब हमारे बच्चे यहाँ आएंगे क्या तब भी ये झरना ऐसे ही बह रहा होगा " हिमांशु ने पूछा
ये सुन हेमंत जी थोड़ा खामोश हुए और बोले " बेटा दुआ करो की ये ऐसे ही बहता रहे सालों साल और तुम्हारे बच्चे भी इसे ऐसा ही देख पाए अपनी आँखों से जैसा की तुम देख रहे हो। लेकिन मुझे उम्मीद नही की ऐसा होगा क्यूंकि जिस तरह हर साल गर्मी पड़ रही है कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हॉउस गैसे इस वातावरण में घुल रही है दिन बा दिन और जंगल काटे जा रहे है सिर्फ मानव की ज़रुरत को पूरा करने के लिए अगर इन सब चीज़ो पर जल्द ही कोइ कार्यवाही नही हुयी और मानव नही सुधरा गंदगी और प्रदूषण फैलाने से तो हो सकता है ये झरना आने वाले समय में सूख जाए और सारी बर्फ एक साथ पिघल कर सारे ग्लेशियर खाली हो जाए बुर्फ से "
हिमांशु और हंसिका ने उस बात पर ध्यान दिया और उसे अपनी डायरी में लिख लिया जो उन्हें अध्यापक ने दी थी लिखने को।
इसी तरह शाम होने लगी । सब लोग खुश थे बच्चे खुश थे किन्तु वहा से जाने का दुख उनके चेहरे पर दिखाई दे रहा था क्यूंकि एक अजीब सी खास बात है उस शहर में जो भी वहा जाता वो शहर और उसकी खूबसूरती वो पहाड़ सब को अपना दीवाना बना देते है ।
"बहुत पैसे खर्च हो गए भगवान जाने अब किया होगा" हेमा ने कहा
"अरे भाग्येवान चिंता क्यू करती हो आज जो हम लोगो ने एक साथ इतना अच्छा समय गुज़ारा है इन वादियों में उसके आगे पैसे कुछ मायने नही रखते और देखना ईश्वर कही ना कही से कोइ ना कोइ बंदोबस्त कर देगा" हेमंत ने कहा और बस में चढ़ गए ।
सब लोग बस में बैठे थे । हेमा परेशान थी लेकिन हेमंत खुश था की उसके बच्चे खुश थे पैसे वो थोड़ा बहुत ओवरटाइम करके कमा लेगा.
लेकिन तभी उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया जिसे देख हेमंत के होश से उड़ गए उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे खुश हो या फिर शौक में रहे।
उसके मोबाइल पर उसकी कंपनी की तरफ से उसके अकाउंट में 5000 रूपये आये थे । हेमा और हेमंत को यकीन नही था की ये कैसे हो सकता है। तनख्वाह आने में अभी दो हफ्ते बाकी थे.
हेमंत ने अपने दफ़्तर फ़ोन किया तो उसे पता चला कि उसके बॉस कि पत्नि कई सालों बाद माँ बनने वाली है इसलिए बॉस ने खुश होकर सब एम्प्लाई को 5000 रूपये दिए है और ये उसके पैसे है जो खाते में आ चुके है .
हेमा ये सुन बेहद खुश हुयी, हेमंत ने उससे कहा देखा मेने क्या कहा था ईश्वर कि लीला अपरम्पार है बस हम लोग उस पर भरोसा नही करते है सुबह शाम पूजने के बाद भी । वो एक रास्ता बंद करता है तो सत्तर रास्ते खोल देता है ।
हेमा, हेमंत , और दोनों बच्चे ख़ुशी ख़ुशी घर आ गए और समझ गए कि कभी कभी घूमने भी जाना चाहिए अपने परिवार के साथ । ताकि उनके साथ घड़ी दो घड़ी बात करने का, उन्हें समझने का मौका मिल सके ।
प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी
Dr. Arpita Agrawal
01-Jun-2022 09:21 AM
यथार्थ और संदेश दोनों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती रचना 👌👌
Reply
Shnaya
31-May-2022 09:41 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Punam verma
31-May-2022 02:42 PM
Nice one
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